जैसे जैसे हम नाम का सिमरन करते जाते है वैसे वैसे
भीतर की सारी गन्दगी भी निकलती जाती
है।बाबा जी कहते है की कलयुग में सिर्फ एक ही
साधन है ।नामरूपि जहाज। जिसपर सवार होकर
ही जिव सचखण्ड तक पहुच सकते है।आत्मा और
परमात्मा के बीच में जो रास्ता है वह नाम है।
जिसपर चलकर आत्मा का परमात्मा से मिलॉप
हो सकता है।
मिलन नहीँ होता क्योँकि आत्मा मन के पिंजरे
में कैद है उसको आजाद करवाने की ‘कुंजी’ केवल
“सत्गुरु” के पास है वो जीव को मुक्ति दिलवाने
के लिये मनुष्य के चोले में धरती पर आते है और
“नाम” का “दान” दे कर भजन सिमरन के द्वारा
मन के पंजे से आजाद करवा देते है….
राधा सवामी जी..