बड़े महाराज जी के समय की बात है के
एक मुस्लिम औरत (माई हुसैनी)डेरे आया
करती थी।एक बार उसने महाराज
जी से कहा तब संगत इतनी
नहीं हुआ करती थी।महाराज
जी से बात चीत करना सरल था।उसने
महाराज जी से कहा के महाराज मुझे खुदा का नाम बताएं।
महाराज जी उसे देखते समझ गए के ये कोई मुस्लमान
औरत है।महाराज जी ने कहा देखो बीबा
आपके घर वाले ऐतराज़ करेंगे।उसने महाराज जी से
कहा।महाराज मैंने क्या गलत कहा हैमैं आपसे खुदा का नाम
ही तो पूछ रही हूँ।महाराज जी
ने माई हुसैनी कीसच्ची लगन
को देखते हुए।उसे खुदा का नाम भी बताया और साथ में
दया औरप्रेम का तिनका भी दे दिया।माई
हुसैनी के पिछले जनम के भक्ति के संस्कार थे।बिना नागा
अभ्यास करने लगी।जब भी माई
हुसैनी डेरे आया करती।सब
सत्संगी महाराज जी से मिलने के लिए line
में बैठते माई हुसैनी को वक़्त मिलता उस समय एक
काशी का पंडित डेरे आया हुआ था।उसने सोचा के यह
मुस्लमान औरत अनपढ़ औरत क्या बाबा जी से
पूछती होगी।एक दिन माई
हुसैनी बाबा जी से मिलने आई।तो परदे के
साथ लग कर देख रहा है।देख रहा हैं और सुन रहा है।माई
हुसैनी बाबा जी से ब्रह्म से ऊपर जाने
की बातें कर रही है।सुन कर
दंग रह गया।
और सोचने लगा के इस बीबी ने अभ्यास
करके सब कुछ पा लिया है।और एक हम है।जो नामदान होते हुए
भी यहाँ गलियो में धक्के खा रहे है।पंडित सोचता हैके
हम ऐसे है जैसे कड़शी हलवे में चलती
है मगर कड़शी को क्या पता के हलवा क्या होता है।
लज़्ज़ित होकर बाहर आ गया।थोड़ी सी सेवा
करने पर थोडा सा सिमरन करने पर और सत्संग सुन कर हम सोचते
है के हम सत्संगी है।हम दुसरो से अलग है।हमें
मुक्ति के बारेमें पता है।बाकी सब लोग अनपढ़ और गैर
सत्संगी है। मगर प्रीत कहा है। जब तक
हमारी आँखों से उस गुरु के मिलाप के आंसू
नहीं निकलते वैराग के आँसू नहीं निकलते
दिखावे के नहीं। हमारी प्रीत
अनेक अनेक नालियो से बह रही है एक
नाली है पैसे की प्रीत
की एक नाली है बच्चों से प्रीत
की एक काम की एक क्रोध की
अनेको अनेको नालियो से हमारी प्रीत बह
रही है।आप सोचो हमारा काम कैसे बनेगा। इन सब नालियो
के आगे विवेक का पत्थर लगाना पड़ेगा।जब सब नालियों के आगे
पत्थर लग जायेगा।तो हमारी प्रीत गुरु
की तरफ एक बड़े नाले से बहने लगेगी।
फिरहमारे विचारो की शून्यता में सिर्फ गुरु गुरु गुरु
ही रह जायेगा।करनी हमने
करनी है दया मेहर सतगुरु ने करनी है।।